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२७७---नीचे लिखी सकर्मक संयुक्त क्रियाएँ ( कर्तृवाक्य ) भूत- कालिक कृदत से बने हुए कालो में सदैव कर्तरि प्रयोग में आती हैं--- (१) आरंभ-जोधक-लड़का पढने लगा। लकियाँ काम करने लगीं । (२) अभ्यास-बोधक-----यो वह दीन, दु:खिनी बाला की दुःख में उस रात । बारह बरस दिल्ली रहे, पर ना ही शेक किए। | ( क ) शक्ति-बोधक----लड़की काम न कर सकी; इम उसकी बात कठिनाई से समझ सके थे ? ( ५ ) पूर्णता-बोधक-नौकर कोठा झाड़ चुका । स्त्री रसोई बना चुकी है। | ( ६ ) वे नाम बोधक क्रियाएँ जो देना या पड़ना के योग से बनती हैं; जैसे, चोर थोड़ी दूर पर दिखाई दिया ; वह शव्द ठीक-ठीक ने सुनाई पड़ा। १०-नीचे लिखे वाक्यों में संयुक्त क्रियाओं के भेद बतलाओ---- एक दिन स्त्री रसोई बना रही थी । विवाह के कुछ दिनों बाद, राजा का देहांत हो गया। उनकी तोपें आग उगलने लगीं । उसने बोतल में लोहे का एक टुकड़ा डाल दिया । खटोला ऊपर चढ़ जाता है । इवा के बिना कोई नहीं जी सकता है। कुछ दूरी पर एक पेड़ दिखाई दिया । लड़का सवेरे घूमा करता है। तुम अपनी किताने क्यों खोये देते हो ? देखो, समझ-बूझकर हँसना, पीछे रोना न पड़े । मुझे समय नहीं मिलता इसलिए मैं आपसे नहीं मिलने पाता । महाराज, मैं आपके कह देने से धनुष उतारे लेता हूँ। | २-नीचे लिखी क्रिया का उपयोग एक-एक संयुक्त क्रिया के रूप में करो । दौड़ना, खींचना, चलना, बुलाना, भेजना, बैठना ।।