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२७४-नामबोधक संयुक्त क्रियाओं में करना होना और “देना क्रियाएँ आती हैं। करना ओर होना' के साथ बहुधा संस्कृत की क्रियार्थक संज्ञाएँ और देना के साथ हिंदी की भाव वाचक संज्ञाएँ आती हैं, जैसे----- होना--स्वीकार होना, नाश होना, स्मरण होना, कंठ होना । करना स्वीकार करना, अंगीकार करना, नाश करना, आरंभ करना । देना-दिखाई देना, सुनाई देना, पकड़ाई देना, छुलाई देना ।। (८) पुनरुक्त संयुक्त क्रियाएँ | २७५--जब दो समान अर्थवाली या समान अनिवाली क्रियाओं का संयोग होता है तब उन्हे पुनरुक्त संयुक्त क्रियाएँ कहते हैं; जैसे, पढ़ना-लिखना, करना-धरना, समझना-बूझना । - ( अ ) जो क्रिया केवल यमक ( ध्वनि ) मिलाने के लिये आती है, वह निरर्थक रहती है; जैसे, पूछना-ताछन, होना-हवाना । २७६--केवल नीचे लिखी सकर्मक संयुक्त क्रियाएँ कर्मवाच्य ॐ आती हैं- , (१) आवश्यकता-बोधक क्रियाएँ जिनमें होना और चाहिए? का योग होता है, जैसे, चिट्ठी लिखी जाती थी । काम देखा जाना चाहिए। '( २ ) आरभ-बोधक; जैसे, वह विद्वान् समझा जाने लगा । आप भी बड़ों में गिने जाने लगे । (३) अवधारण-बोधक क्रियाएँ जो "लेना देना; “डालना' के योग से, बनती हैं, जैसे, चिट्ठी भेज दी जाती । काम कर लिया गया । (४) शक्ति-बोधक क्रियाएँ; जैसे, पानी लिया जा चुका है। (५ ) पृर्णता-बोधक क्रियाएँ; जैसे, पानी लाया जा चुका है । (६ ) नाम-वोधके क्रियाएँ; जो संस्कृत क्रियार्थक संज्ञा के योग से बनती हैं, जैसे यह बात स्वीकार की गई । कथा श्रवण की जायगी । (७) पुनरुक्त क्रियाएँ; जैसे, काम देखा-भाला नहीं ।