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. (इ) कभी-कभी क्रियार्थक के साथ चाहना जोड़ते हैं; जैसे, । मैं जाना चाहता हूँ। वह लिखना चाहता है ।। (उ) अभ्यास-बोधक और इच्छा-जोधक क्रियाओं में जाना का भूतकालिक कृदंत गया' के बदले जाया होता है, जैसे वह, जाया करता है। वे जाया चाहते हैं । (४) पूर्वकालिक कृदंत के मेल से बनी हुई। |. २६५-पर्वकालिक कृदंत के योग से तीन प्रकार की संयुक्त क्रियाएँ बनती हैं-( १ ) अवधारण बोधक ( २ ) शक्ति-बोधक और ( ३ ) । पूर्णता-बोधक। । १६६--अवधारण बोधक क्रिया से मुख्य क्रिया के अर्थ में अधिक निश्चय पाया जाता है। इस अर्थ में नीचे लिखी सहायक क्रियाएँ आती हैं--- उठना, बैठना, डालना-थे क्रियाएँ बहधा अचानकता के अर्थ में आती है; जैसे बोल उठना, जाग उठना, मार बैठना, उठ बैठना, तोड़ | डालना, काट डालना । लेना, आना, इनसे वक्ता की ओर क्रिया का व्यापार सूचित होता | ई; जैसे, कर लेना, घूम लेना, बढ आना, दे आनः । । । पढ़ना, जाना—ये क्रियाएँ बहुधा शीघ्रता सूचित करती हैं; जैसे, | कूद पड़ना, चौंक पड़ना, खो जाना, पहुँच जाना । देना-इससे दूसरे की ओर क्रिया का व्यापार सूचित होता है; जैसे, जोड़ देना, कह देना, मार देना । |हना- यह क्रिया बहुधा भूतकालिक कृदंत से बने कालो में आती इसके आसन्नभूत और पूर्णभूत कालो से क्रमशः अपूर्ण वर्तमान अपूर्णभूत कालों का बोध होता है; जैसे, पढ़ रहा है। वह जा । रहा था । | १६७-शक्ति बोधक क्रिया पूर्वकालिक-कृदंत में सुकनाजोड़कर | मैनाई जाती है; जैसे, खा सकना, हो सकना ।