पृष्ठ:संक्षिप्त हिंदी व्याकरण.pdf/१६८

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
( १५८ )

________________

( १५८ ) १ अ ) “खाना' में आद्य स्वर इ” हो जाता है। इसका एक प्रेरणार्थक विवाना भी है। ४०-कुछ धातुओ के पहले प्रेरणार्थक रूप ला” अथवा “आ लगाने से बनते हैं; परंतु दूसरे प्रेरणार्थक में वृा लगाया जाता है; जैसे कहना कहाना या कहलाना कृवाना दिखना दिखाना या दिखलाना ।। दिखवाना सीखना सिखाना या सिखलाना। सिखवाना सूखना । सुखाना या सुखलाना सुखवाना बैठना बिठाना या बिठलाना बिठवाना ( अ ) कहना” के पहले प्रेरणार्थक रूप अपूर्ण अकर्मक भी होते हैं; जैसे ऐसे ही सजन ग्रंथकार कहलाते हैं । विभक्ति-सहित शब्द पद कहलाता है । । ( अ ) “कवाना' का रूप कहलवाना' भी होता है । ( इ ) बैठना के कई प्रेरणार्थक रूप होते हैं; बैठाना बैठालना बिठालना बैठवाना नाम-धातु और अनुकरण-धातु चिंकार-धिकारना अपना-अपनाना उद्धार-उद्धारना अनुराग--अनुरागना लाठी---लठियाना अलग-अलगाना संज्ञा अथवा विशेषण से जो क्रियाएँ बनती हैं उन्हें नाम धातु कहते हैं। किसी पदार्थ की ध्वनि के अनुकरण पर जो क्रियाएँ बनाई जाती हैं। वे अनुकरण-धातु कहलाती हैं, जैसे, बड़बड़-बड़बड़ाना अड़भड़---भड़भड़ाना खटखट-खटखटाना टर-टना । भनभनभनभनाना