पृष्ठ:संक्षिप्त हिंदी व्याकरण.pdf/१६६

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
( १५६ )

( १५६ ) बंधना-बॉधन मरना-मारना विटना---पीटना पटना-पाटना ( अ ) सिलाना का सकर्मक रूप सीना होता है; २---तीन अक्षरों के धातु में दूसरे अक्षर का स्वर दीर्थ होता है; जैसे निकलना-~-निकालना उखड़ना===उखाड़ना सम्हलना-असुरहालना बिगड़ना-बिगाड़ना ३-किसी-किसी धातु से आद्य इ या 3 को गुण करने से, जैसे:-- फिरना==>फेरना खुलना-खोलना दिखना-देखना घुलनाघोलना छिदनाछेदन मुडना--मोड़ना ४==कई धातुओं के अंत्य ट के स्थान में डू हो जाता है; जैसे--- जुटना---ोड़ना टूटना-तोड़ना छटला–छोड़ना फटन-फाड़ना | फूटना-फोड़ना ( अ ) ६°बिक्रना का सकर्मक “वेदना और रहना का ६५ रखना होता है। | . २५४-~-प्रेरणार्थक क्रियाओं के बनाने के नियम नीचे दिए जाते हैं ।। १मुल धातु के अंत में ‘अ’जोड़ने से पहला प्रेरणार्थक और ‘या’ जोड़ने से दूसरा प्रेरणार्थक रूप बनता है, जैसे-- । मू० घा० प्र० प्रे० दू० प्रे० गिरना गिरा--- गिरवा-ना चलना चलवा--- फैला--नी फैलवाना उड़seeना उड़ाना उड़वा-ना चढ़ना चढ़ाना चढ़वा--ना