पृष्ठ:संक्षिप्त हिंदी व्याकरण.pdf/११७

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( १०७ ) . कर्म संप्रदान गौ को गौओं को संबोधन हे गौ हे गौओ सूचना---ऊपर जिन कारकों के रूप नहीं दिए गए हैं, उनके रूप दूसरे.कारकों के अनुसार बनाए जा सकते हैं ।।। १८८-संस्कृत संज्ञाओ का मूल एक वचन संबोधन-कारक भी उच्च ' हिंदी के गद्य और पद्य में लाया जाता है; जैसे, (१) व्यंजनांत संज्ञाएँ--राजन-राजन् । श्रीमत-श्रीमन् , भगवत्- | भगवन् , महात्मन् महात्मन, स्वामिन-स्वामिन् । (२) आकारांत संज्ञाएँ-सीता-सीते, राधा-राधे, नर्मदा-नर्सदे, • प्रिया-प्रिये, आशा-आशे । , '( ३ ) इकारांत संज्ञाएँ-हरि-हरे, मुनि-मुने, रति-रते, शांति-शांते | सीतापति-सीतापते । (४) इंकारांत संज्ञाएँ-पुत्री-पुत्रि, देवि-देवि, जननी-जननि, सरस्वती-सरस्वति, लक्ष्मी-लक्ष्मि । (५) उकारांत----बंधु-बंधो, प्रभु-प्रभो, गुरु-गुरो, धेनु-धेनो । (६)-ऋकारात-पितृ-पितः, मातृ-मातः, दातृ-दातः,भ्रातृ-भ्रातः। अभ्यास १--नीचे लिखी संज्ञाओ की कारक-रचना उसके सामने लिखे हुए कारको और वचनों में करो -- , ' ( क ) घोड़ा?---सब कारको के दोनो वचनो में ।। । (ख) “काका'.-कच,क,और संबोधन कारर्को के दोनों वचनोमें । (ग) माली--विभक्ति-रहित कर्ता और संबोधन कारको के दोनो वचनो में । (घ)-बहिन-विभक्ति-रहित कत्त और कर्मकारकों के दोनों वचनों में । (ङ) “माता-संबंधकारक---के बहुवचन में ।