पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/९४

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रामस्वयंवर। हौं सव कथा कहत जैसो इत भो वृत्तांत महाई ॥ . जासु साप ते भयो सून यह आश्रम प्रथम सुजाना। गौतम मुनि इक रहै महातप यहि आश्रम मतिमाना ॥४३७॥ तिनकी रही अहल्या नारी अति सुंदर सुकुमारी। दोउ मिलि कीन्यो इहाँ महातप वर्ष अनेक सुखारी ॥ गौतम-नारि निहारि महाछवि तुरनायक मन माह्यो । घात लगायो मिलन हेत तेहि नहिं अवसर कछु जोया ॥४३८॥ तव गौतम को रूप धारि हरि आयो आश्रम माहीं। मजन हेतु गये मुनिवर जब प्रविल्यो तुरत तहांहीं॥ यहि विधि मुनितिय सों रमि वासब चल्यो कुटी से आंसू। कढ़त कुटी ते मिलिगे गौतम उर उपजी अति नासू ॥३६॥ ज्वलित तेज तप दुराधर्ष अति आश्रम करत प्रवेसा । अपना रूप धरी छल बल बस देख्यो त्रसित सुरेसा ।। समिध सहित कुस लिये पानि मुनि यक कर कुभ समीरा । बासव छल बल जानि तपोबल किया कोप मतिधोरा ॥४४०॥ मेरो बपु धरि भरे सुराधम नहिं कछु धर्म विचारी। रम्यो विप्रनारी सों सुरपति मेरी त्रास विलारी॥ ताते वृपण हीन होवे हठि पावै अति संतापा। यहि विधि कहि वासन को गौतम दियो अहल्यै सापा ॥४४॥ री पापिनि तँ धर्म छाडि सव सुरपति सों रति ठानी। - अंतहित है बस यहि आश्रम विना अन्न अरु पानी ॥ आठौ पहर तपत रहिहै तनु जब बीती बहुकाला।