रामस्वयंबर। मंद मंद गमनत गयंद गति ऋषि संग रघुकुलकेतू ॥ गये दूर पथ जुग जोजन जब जनक नगर रहि गयऊ। मिथिलापुर के तुग पताके मुनिगन देखत भयऊ ॥४३३॥ अति उतंग मंदिर सुंदर सव चमचमात चहुँघाहीं । फहरै नाके नाक पताके सुखमा के पुर माहीं॥ भानहुँ पूरब उदय दिवाकर विलसत करन पसारे । नहिं ठहरात दीठि जगमग द्युति चौथा चखन निहारे ॥३४॥ (कवित्त) प्राची दिसि प्रगट दिवाकर दुतीय कैधौं, सरद निसा धौं चंद्र ताराजुत भावती ॥ माया को विलास कैनौं, ब्रह्म को निवास कैधौं, विष्णु को अवास कैघों, छाय छवि छावती ॥ रघुराज देखो यह जनकनगर सोभा, देखत बनत नहिं मुख कहि आवती। कैधौं अलकावती है, कैधौं अमरावती है, पद्मा की बनाई कैधौ पुरो पदमावती ॥४३५॥ अहिल्योहार । (छंद चौवोला) और कछ नेरे जव गवने मुनिजुत राजकुमारे । मिथिलापुरी निकट अमराई सोतल सघन निहारे॥ । तहं यक मंजु मनोहर मुदकर आश्रम सून दिखाना। जोरि पानि पंकज रघुनंदन मुनि-से बचन बखाला ॥३६॥ सुनत राम के बचन गाधिसुत बाले न्दु मुसकाई ।
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