रामस्वयंवर। (छंद चौवोला) सुनि मुनि-वचन उठे रघुनायक अलसाने अंगराने। . कर सों कर गहि लपन उठाये मुनि बंदे सुख साने ॥ मलन हेत गये नद तट पर प्रातकृत्य निरवाही। सविधि नहाय कियो संध्या पुनि दीन्ह्यो अर्घ्य उछाहीं ॥४१॥ (दोहा) चलत चलत तेहि पंय मह, बीति गये जुग याम । विष्णुपदी सरिता लखे, गंगा जग जेहि नाम ॥४१७१ विष्णुपदी के तार में, कोन्ह्यों कौशिक पास । राम लपन मुनि-मंडली, पाये सकल सुपास ॥४१८॥ (छंद चौवोला) प्रतिकृत्य करिकै रघुनंदन सहित लपन लघु भाई। विश्वामित्र समीप आईकै गहे चरन सिर नाई ।। तुमहि जानि उतरन के आसी मुनिन उतरनी तरनी। आई सुख भरनी मनहरनी गंगपार की करनी ॥४१६॥ . राजकुमार-वचन सुनि मुनिवर मुनिन सहित चढ़ि नाऊ। . उतरे गंग संग दसरथ-सुत त्रिभुवन विदित प्रभाऊ ।। . उत्तर कूल जाय मुनिनायक सब ऋषिगन सत्कारे । कियो निवास राम लछमन जुत सुंदर गंग किनारे ॥४२०॥ ! (दोहा) राम लपन सुत गाधिसुत, चले नगर की ओर। अमरावती समान छवि, रमनीयता अथोर ॥४२१॥
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