रामस्वयंबर । ६७. (छंद चौबोला). पहुंचव आजु राम सिद्धाश्रम हम तुम प्रान पियारे। जथा हमारी तथा तिहारो भेद न परत निहारे।। अस कहि मुनिनायक रघुनायक लपन सहित पगु धारे। मनहुं पुनर्वसु जुगल तार विच इंदु प्रकास पसारे ॥३६८॥ रामलपन को मुनि सिगरे पुनि अनुपम अतिथि विचारी। कंदमूल फल फूल भेंट दै दीन्हे सीतल वारी॥ बैठे राम लपन मखलाला विश्वामित्रहि आगे।. मुनिमंडल मंडित रघुनंदन निरहिं सब अनुरागे ॥३६॥ कुशल प्रश्न पूछत रघुवर को बीति गये मै दंडा । तत्र कर जारि कहो कौशिक सो प्रभु करि कर कोदंडा। आजुहिं ते बैठी मुनिनायक निज मन दीक्षा माहा। करहु निसंक जज्ञ विधि संजुत ऐहैं निसिचर नाहा॥३७०॥ (सवैया) सुंदर साँवर राजकिसोर, भलो यह बात कही मन भाई । है। समरत्य सवै विधि ते, दसरथ के लाडिले आनंददाई ॥ कौशिक दीक्षा लई मख को, भये मौन वदे विधि जैहै नसाई। आजुते औ पट वासर लौं,रघुराजजू रच्छन कोजै वनाई॥३७॥ बीति गये जब पंच निसा, दिन आयो छठौ दिन पूरनमासी। , पूरन आहुति को समयो भयो, भे मुनिवृंद विपादित त्रासी॥ श्रीरघुराज कह्यो लपनै लला, होउ तयार विलंब विनासी । जानि परै हमहीं हठि आजु,निसाचर सैन की आवनि खासी।।
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