पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/८१

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

रामस्वयंवर श्रीरघुराज सुनारघुराज, विचारिकह्यो नहिं वात वृथाहों । आजनिवास करौरजनी इत, काल्हि चलीमम आश्रम काहीं॥ (दोहा) " . .. ... ' ' तेहि रजनी में सुख सहित, बन ताडुका मैंझार। 'विश्वामित्र वसे सुखी, लै-दोउ राजकुमार ॥३५४॥ अरुनाई प्राची - दिसा, नेसुक कियो पसार ।। ससि विकास कछु हासो , जहँ तहँ झलमल तार॥३५५॥ 'विश्वामित्र उठे प्रथम, सुनि धुनि लालसिखान । अति मंजुल बोले वचन, सुनहु भानुकुलमान ॥३५६॥ समर श्रमित सोभित विजै, समित संत्रु सुख पाय । सूर मिलन आवत ललकि, उंटहु लपन रघुराय ॥३५७॥ मनिवर की वानी सुनत, द्वेग मीजत अलंसान । . परनसेज में जगत भे, दिनकर वंस प्रधान ॥३५८॥ मुनि पद बंदन करि मुदित रघुनंदन दोउ भाय। संध्यावंदन करत भे, निर्मल सरित नहाय ॥३५॥ , बेला बिमल विलोकि के, चासव वात विचार। विश्वामित्र बदे बचन, बंधुन विगत विकार ॥३६०॥ (छंद चौवोला) , . . । दीनबंधु दोउ बंधु बीरवर आवहु निकट हमारे 'दिव्य अस्त्र सव लेहु सत्रुजित कौसल्या के प्यारे ॥. सब अस्त्र सस्त्र रघुनंदन सत्रु विजय करवारे।. .. प्रीति प्रतीति सहित देता मैं तमको पात्र निहारे ॥३६॥