दिया। यद्यपि इन्होंने अपने पुत्र वीरभद्र को दरवार में भेज दिया था पर स्वयं नहीं गये थे, इससे बादशाह ने फिर चढ़ाई करने का विचार किया। परंतु वीरभद्र की प्रार्थना पर अकबर ने राजा वीरवल और जैनखां कोका को इन्हें बुलाने के लिए भेजा और दरबार में पहुंचने पर इनका अच्छा सत्कार किया.! सं० १६४६ वि० में इनकी मृत्यु हो गई और वीरभद्र राजा हुए। ये राजधानी से स्वदेश आते समय पालकी परसे गिर पड़े थे जिससे अत्यधिक चोट आई; पर औषध करने पर ये अच्छे हो गए थे;किंतु. रक्त ऐसा बिगड़ गया था कि अनेक रोगों ने इन्हें आ घेर और दूसरे वर्ष इस लोक से चल बसे।. . . . . . . ;
राजा वीरभद्र के अल्यवयस्क पुत्र विक्रमाजीतके राजा होने. पर राज्य में बहुत. गड़बड़ मच गई। तब अकबर ने राय पत्र दास को वांधवगढ़ विजय करने के लिये भेजा । इन्होंने कई स्थानों पर थाने बैठाकर वहां अधिकार कर लिया ।सं० १६५४ वि० में आठ महीने और कई दिन के घेरे पर बांधवगढ़ टूटा सं०.१६५६ वि० में दूसरे पुत्र दुर्योधन को बादशाह ने राजा बनाया और भारतीचंद्र को उनका अभिभावक नियुक्त किया। ये स्यात् वर्ष ही दो वर्ष गद्दी पर रहे क्योंकि इनका नाम महाराज रघुराजसिंह ने-अपनी वंशावली में नहीं दिया है। राजा विक्रमाजीत ने रीवा नगर बसाया और दुर्ग बनाकर इसे अपनी राजधानी बनाया । इनके पुत्र अमरसिंह ने सं॰१६८३ वि० में जहांगीर के दरबार में जाने की इच्छा प्रकट की