रामस्वयंबर (छंद चौवोला):. : ...: पुरुपसिंहः जागहु - रघुनंदन कौसल्या के ,प्यारे करहु, विमल सरजू जल मजन सजन प्रान अधारे ॥ विश्वामित्र बचन सुनि रघुपति उठे नयन अलसाने ! लपनहुँ को जगाय मुनिवर पद वंदे हिय हरषाने ॥३२६ परन सेज- तजि प्रातकृत्य करि सरजू तीर सिधारे । सविधि किया सरजू जलमजन धीत बसनतनुधारे। दै दिनकर को.अर्घ्य मंत्र पढ़ि उपस्थान पुनि कीन्हे । गायत्री को. जपन लगे पुनि ब्रह्मवीज़ मन दीन्हे ॥३३०॥ यहि बिधि करि संध्या वंदन रघुनंदनमुनि ढिग आये। मुनिपद पद्म-पराग सीस धरि भूषन वसन सोहाये॥ राम लपन को देखि गाधिसुत-अतिसयामानंद पाये। .लै मृगचर्म: कमंडलु मुनिवर आगे चले सोहाये ॥३३॥ 'राम लपन गमने तिन पाछे आछे वेष बनाये। गंगा. सरजू संगम पहुंचे तह मध्याह्न नहाये ॥ 'करि मध्याह्न काल की संध्या मुनिवर निकट सिधारे । 'मुनि दीन्हें फल मूल सुधा सम दोऊ बंधु अहारे ॥३३२॥ 'गंगा सरजू संगम के तट आश्रम लखि बहु मुनि के ।. करतंरहे पूरव जहं वर तप निकट सरजु सुरधुनि के ।। 'राम कहो कर जोरितुनहुँमुनि काके आश्रम अहहीं । देहु बताय कृपा करि हमको सुनन बंधु दोउ चहहीं ॥३३३॥
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