पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/७२

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रामस्वयंबर। ('छंद चोयोला) द्वारपाल के वचन सुनत नप उठे समाज समेतू ।' लेन चले मुनि की अगुवाई जिमि विधि कह सुरकेतू।। नृप कर पूजन लियो महामुनि सकल शास्त्र अनुसारे, विश्वामित्र लगाइ हिये महं मिले भूमिभरतारें ॥२६॥

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कुसल प्रश्न पूछयो सर्वन, अपनी कुसल सुनाय । दसरथ के संग भवन में, किय प्रदेस सुख पाय ||२७ विश्वामित्र अनंद लहिरोमांचित संवं गात । राजसिंह से कहत भे, विस्तर वैन विख्यात ॥२८॥

जाके हित आयो इतै, से सुनिये महराज,।

तेहि पूरन करि-होहु भव, सत्यप्रतिक्ष दराज ॥२६६॥ , .. [छंद चौयोला ]..... करन लगें मख सिद्धाश्रम में हम जेहि काल भुवाला। तह मारीच सुबाहु निसाचर आये कठिन कराला ॥ जवं हम व्रत करि जज्ञ संमापत करन चहे द्विजसंगी। निसिंचर जुगल कामरूपी तव करि दीन्हे मखभंगा॥३०॥ नहिं रघुपति उन्मुख द्वउ निसिचर खड़े होने के जेगू। "रामछाडि अस कोउ नहिं तिन कर करैजो प्रान-बियाँगू। महावली तिमि अति अभीत सठ कालपास वस दोऊ । नहिं वचिहैं रिपुराम समरमहं असं भाषत सब कोऊ ॥३०१ १ जेठो तनय तुम्हार प्रानप्रिय जदपि देत कठिनाई।