पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/७१

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रामस्वयंबर गाढ़े,भयोयुद्धदाहुन कोहायनं हजार है। हारयो करि कोहू को निहारो नहिं रखवारी, औरत पुकारी अब अच्युत अधार है। ल्याउ चक्र मेरो अस कहि उठि धायाराम, मातु मुख सनत गयंद की गोहार है.||२६|| चौकि उठि जननि धरयो है. दारि अंगन: लौं, अंक में उठाय लोय पलना सोवायो है ॥ भने रघुराज मुख चूमति चरन: चापि, चील्ही करवाय राई लोन उतराया है। फैसो कियो लाल देख्यो सपन कराल कछ, काहे है. विहाल यहि काल उठि ध यो है। उर, मति मान मैं तो तेरई समीप बैठी, कह नहिं प्राह नहिं कहुं गज आया है।।२९२॥ .:.. (दोहा) .:. यहि विधि करत कला विविध, वसत अवधपुर माह । अवध प्रजानि उछाह नित, राम वाह की छाँह ॥२६॥ विश्वामित्र-आगमन। (छंद: चौधोला.) . .. वृद्ध वृद्ध सिगरे रघुवंसिन पौर सचिव मतिवाना:। जुप की सभा मध्य सब बैठे करत, विचार विधाना। इतने ही में द्वारपाल द्वै आतुर आये धाई ॥ -- - - करि बंदन ते अजनंदन को दीन्हें बचन सुनाई ॥२६॥ " (दोहा)... ...

महाराज महिपति-मुकुट, जासु महा मुनि ख्याति ।

• साई विश्वामित्र इत, आये चिनहि जमाति:॥२६॥