ली थी। आरेल पहुँचने पर जब नदी मिली और नाव एक भी नहीं थी, तब इसी राजा ने हुमायूँ को एक उतार से पार उतारा और उसकी सामग्री-रहित सेना के लिये बाज़ार लगवा दिया था। वहाँ कुछ दिन आराम से रहने पर हुमायूँ कड़े मानिकपुर की ओर चला गया। गुलबदन बेगम ने राजा का नाम नहीं दिया है, पर जौहर ने अपनी पुस्तक में वीरभानु नाम लिखा है और यह भी लिखा है कि उसने हुमायूँ का पीछा करने वाले मीर फ़रीद ग़ोर को परास्त कर भगा दिया था।
इनकी मृत्यु पर इनके पुत्र रामचंद्र या रामसिंह राजा हुए जिनके दरबार में तानसेन नामक प्रसिद्ध गवैए थे। अकबर ने उनकी प्रशंसा सुनकर उन्हें लाने के लिए अपने शस्त्राध्यक्ष जलालखाँ को भेजा। रामचंद्र ने बादशाह के योग्य भेंट सहित तानसेन को विदा किया। सं॰ १६२१ वि॰ में राजा रामचंद्र ने ग़ाज़ीख़ाँ तन्नोज़ नामक एक सरदार को शरण दी जिस पर बादशाही सेना ने चढ़ाई कर दी। कई युद्धों के अनंतर ग़ाज़ीख़ाँ मारा गया और राजा बांधवगढ़ में घिर गया। कई दरबारी राजाओं के मध्यस्थ होने से संधि हो गई। सं॰ १६२७ वि॰ में बादशाही सरदारों ने दुर्ग कालिंजर[१] घेर लिया। उसकी रक्षा अपनी शक्ति के बाहर देखकर रामचंद्र ने उन्हें यह दुर्ग सौंप
- ↑ सं॰ १६०२ वि॰ में शेरशाह ने इस दुर्ग को राजा कीरतसिंह चंदेल से विजय किया जिसे कुछ वर्ष के अनन्तर रामचन्द्र ने वहां के दुर्गाध्यक्ष से क्रय कर लिया था।