रामस्वयंबर। - रोटी गहे हाथ में सुचोटी गुहे मोथ में, लंगोटी कछे नाथ साथ बालक विलासी है ।। २४२ ॥ 'भरि अनुराग काग वागै प्रभु पाछे लाग, पद्मराग अंगन में भाग बड़ मानिकै। . . भूमि गिरे जूठे कन खात न अघात उर, जात कहुँ आने गति चंचलसी ठानिकै। एक बार पानिसों गिरायो राम रेग्टी टूक, भाग्यो चोंच दावि द्रोन भीति अति आनिकै। हाथ को पसारे नाथ माथ को उधारे धाये, बायस के साथ रघुराज जन जानिकै ॥२४३॥ (सवैया) बायस पीठ को औ प्रभु पानि को अंतर अंगुल द्वैक देखानो। भाग्यो महा भभरो भव लोकन सातहु स्वर्ग पताल परानो। मेरु के कंदर अंदर हू धस्यो देख्यो जवै मुरिकै डर मानो। अंगुली द्वै निज पीठि ते पानि पसारे भुजा रघुराज लखानो ॥ बायस भीति सोमूद्यौ द्वगै पुनि खोलि लख्यो पुरकोसल आयो। पाँचही वर्ष के अंगन खेलत ताहि बिलोकि हरी मुसुकायो ।। • ताही समै प्रभु के बिहंसात तुरंतही सो मुख जाय समायो। श्रीरघुराज अनेकन अंड-कटाह लख्यौ कछु अंत न पायो ॥२४५॥ बोते अनेकन कल्प तहाँ भटकात कहूं थिरता नहिं पाई। देखो विचित्र भली-रचना बहु साँसहि लेत सो बाहर आई ।। . श्रीरघुराज लख्यो प्रभु को कर रोटी सुखेलत अंगन धाई।
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