सिकंदर लोदी ने इन पर चढ़ाई की। विंध्य पर्वत की एक घाटी के पास युद्ध में राजा परास्त हुआ और भागते समय धावा
के कारण उसकी मृत्यु हो गई । सिकंदर लोदी राजधानी यांधवगढ़ के दस कोस उत्तर तक पहुँचा. पर इस चढ़ाई में उसके बहुत से घोड़े मर गए थे जिसका पता पाकर, हुसेन शाह शर्की ने इस पर चढ़ाई की। राजा शालिवाहन ने सिकंदर का साथ दिया और इसकी सहायता से वह चुनार होता हुआ बनारस चला गया। सं०१५५५ ई० में सिकंदर लोदी फिर बघेलखंड में आया और यहाँ छ:मास रहा । इसने राजा शालिवाहन से उसकी पुत्री विवाह में मांगी, परंतु उसके न मानने पर लड़ाई छिड़ गई। सिकंदर लोदीने बांधवगढ़ तक चढ़ाई करके उसके आसपास के ग्रामों को लूटा, पर उस दृढ़ दुर्ग को विजय न कर सकने पर वह लौट गया। राजा शालिवाहन के पुत्र और उत्तराधिकारी वीरसिंह देव हुए जिन्होंने वीरसिंहपुर नामक नगर वसाया, जो आधुनिक पन्ना राज्य के अंतर्गत है।,
इनके पुत्र राजा वीरभानु हुए जो कुछ दिन तक सुलतान सिकंदर लोदी के दरबार में रह चुके थे । इस समय इस वंश का प्रभाव और ऐश्वर्य इतना बढ़ गया था कि वावर ने अपने आत्मचरित्र में भारत के तीन बड़े राजाओं में भट्टः अर्थात् बधे- ल प्रांत के राजा को भी परिगणित किया है । गुलबदन वेगम ने हुमायूँ नामा में लिखा है कि जब हुमायूँ चौसा के युद्ध में शेरशाह सूरी से परास्त होकर भागा था, तब उसने यहीं कुछ दिन शरण