पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/५८

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रामस्वयंवर । लै जोगी निज गोद राम को मोद मानि मन भूरी । छ्वै सिरफर पुनि परलि कंजपद धारयो सिरपदधूरी॥२३०॥ पूजि गई कामना हमारी लालन देखि तिहारो। अब मैं जान चहौं अपने घर करि रच्छन तुव प्यारो॥ अस कहि उमासहित परदच्छिन दीन्ह्यों चारि पुरारी। बार बार पद परसि पानि सों कीन्यों गमन सुखारी ॥२३॥ बाल-लीला (दोहा) यहि विधि बीते वरस जुग, एक दिवस मुद बाढ़। कनफकुभ कर पकरिके, भये राम महि ठाढ़ ॥२३२।। (छंद चौवोला) धाई लखि धाई सुखछाई मातन खवरि जनाई।। ठाढ़े भये कुवर यहि अवसर कृपा करी जगसाई ।। आनंद अंबु अंब अंवक भरि सवै वहां जुरि आईं। दीनन दीन्ह्यों दान मान करि कुंभ सोधाई पाईं ॥२३॥ खबरि पठाइ दई दसरथ पहं राम भये अव ठोढ़े। उमै पानि नृप मनिन लुटावत आये अति मुद वाढ़े। अर्ध इंदु इव लघु ललाट पर लागे तीनि दिठोना। , सुधा पियन हित मनहुँ सीस मधिलसैं भुवंगमछोना॥२३४॥ त्रिकुटी ते कानन लगि सोहत भृकुटि रेख लघु लोनी। मनहुँ काम लिखि दियो लीक द्वै इतनी ही छवि छोनी ॥