४१ रामस्वयंबर। डोल्यो सिसुमार त्यों तरनि तारा तारापति, चरन अँगूठी जब मेले मुख राम हैं ॥२२५॥ शंकर आगमन (दोहा) एक समय बैठी रहीं, कौशल्यादिक मात । पय प्यावत हलरावती, कहि कहि लालन तात ॥२२६॥ (छंद चौबोला) सखी सयानि एक तहं आई ऐसे वचन सुनायो। जोगी वावा नारि लिये यक द्वाग्देस महं आयो॥ बैल चढ़ो अंग भस्म चढ़ाये भानु समान प्रकासू । वालक करतल देखि कहत सच जन्म हाल अनयासू॥२२७॥ ल्याउ लेवाइ तुरत जोगीवर कौशल्या कह पानी । गई लेवाइ ताहि अंतहपुर महामोद मन मानी॥ जोगी बावा देखि रामकह कीन्ह्यों मनहिं प्रनामा। करी मनहिं मन तासु नारि नति पूर भयो मनकामा॥२२॥ कौशल्या कैकयी सुमित्रा चलि आई सवरानो। तेहि वैठाय पीठ पद धायो लै पानी निज पानो॥ ल्याइ चारिहूं लालन को तव डारयो चरनन माहीं। जोगी को जियै जुग जुग सुत इन कह कहुं डर नाहीं॥२२॥ भये मनोरथ पूर हमारे देखि कुमार तिहारे। ताहि सम भाग्यवंत नृपवरनी हम नहिं जगतनिहारे ।
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