रामस्वयंवर। सकल राजवंसी.रघुवंसी भोजन करि सुख छाये। अचवन करि नरनाथ हाथ लों तांबूलन को पाये ॥१८॥ बहुरि प्रजन को किया निमंत्रण व्यंजन विविध जिवाये। पौर जानपद दै असीस सब निज निज भवन सिधाये॥ जथा किया सत्कार बाहरे दसरथ नृप मतिखानो। तिमि चांधवन पौर नारिन को सतकारी सब रानी ॥१६॥ खात खवावत हसत हसावत भै संध्या सुखदाई । छठी चारु उपचार करन नृप को वशिष्ठ बोलाई । परम हुलाल प्रकास हिये महं गुरु रनिवास सिधारे । छट्ठी भवन साजु सव सुंदर वेद विधान सारे ॥२०॥ कौशल्या कैकयी सुमित्रा वैठी सुतन समेतू। । कनककुभ मनिखचित सप्तसत धरिगे कनक निकेतू ॥ भनिन दीप-अवली अति राजति आगे गौरिगनेसू । पुरट पात्र सामग्री सोहति जैसी वेद निदेसू ॥२०॥ अवसर जानि सुमंत तुरंतहि भूपति गये लिवाई। गुरु वशिष्ठ तह वेद मंत्र पढ़ि कृत्य अरंभ कराई । छठी भवन भूपति रानिनजुत छठीचत्य सब करही । खड्ग कमान बान करियारी मंश पूजि सुख भरहीं ॥२०२२ यहि विधि करिकै छठी कर्म सब लक्ष गऊ नृप दीन्हें । गुरु वशिष्ठ विप्रन कहं वाटे ते सादर सब लीन्हें । अवसर जानि रैनि आधी गत सैन-अयन पगु धारे। .. - छठी-भवन जागरन करी तिय गाइ वजाइ अपारे ॥२०॥
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