पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/४८

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रामस्वयंघर। धन्य भाग्य तेहि रानि कौशला छोट रूप महं पारे। जासु नाम मुख लेत रोग भव छूटत बिनहिं प्रयासा। ताहि देत धूंटी नृप-भामिनि देखहु अजव तमासा ॥१७॥ (कवित्त). पेषिकै प्रदोष काल भौन महिपाल के, चामीकर थारन में परम प्रभा दली। धै धै हेम दीपक प्रदीपति सुपंथ छाइ, पहिरे सुरंग पट धारे भूषनावली ॥ मंगलामुखीन संग गावै मंगलानि गीत, मंगलानि द्रव्य लीन्हे चार कुसुमावली । रघुराज आई राजमंदिर अवध नारी, तारावली आगे करि मानो चपलावली ॥१७॥ (घनाक्षरी) रोशनी के वृक्ष रोशनी के बने ऋषि वहु, रोशनी के गुच्छे रोशनी के रक्ष अच्छे हैं। रोशनी के वाजी बाजी रोशनी की गजराजी, रोशनी के राजिव तड़ाग गन स्वच्छे हैं। चंद चांदनी सों कहूँ बिमल प्रकास पूरो, कहूं भान भासही सों फूल जात लच्छे हैं । भनै रघुराज कहूँ श्याम रंग पीत रंग, हरित सुरंग रंगभूमि रंग लच्छे हैं ॥१७॥ (छंद चौबोला) । मोदमई यहि भांति चैत की नौमी निसा सिरानी। भयो भोर चहुं ओर सोर मग करन लगे सुखदानी। उठि भूपति करि प्रासंकृत्य सब लियो वशिष्ठ वोलाई। दीन्हों द्विजन दान संपति बहु बार चार सिर नाई ॥१७॥