पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/४७

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रामस्वयंघर। पूरित सस्य प्रमोद मही सव ससि भूपति ससिसाला । लघु बड़ सहित रत्न कलस बहु तेइ तारन की माला १६५।। देव विमानावली विराजति गगन पंथ मलहीना । सारस सुखित मराल कराँकुल अनु सहित पख पीना ॥ रघुवंशी सरदार रत्न की खोसे सीस कलंगी। मनहुं सालि की वालि विविध अति सोहिरही बहुरंगी १६६|| (दोहा) अवध भुवार अगार में, लखि कुमार अवतार । मनहुं सरद है सारदा, खड़ी करति बलिहार ॥१६॥ (सोरठा) को कहि सके उछाह, रामजन्म में जस भयो । लहै कौन विधि थाह, मनुजमहोदधि में प्रविसि ॥१८॥ (छंद चौवाला) घोलि वशिष्ठ भादि गुरु वृद्धन कुवरत भवन सिधारे । नांदीमुख शराध आदिक नव जातकर्म निरधारे॥ जो राजर्षि यज्ञ भागन ते अबलों नाहिं अघायो । ताहि कनक मुद्रा मह मधु धरि दसरथ भूपचटाया ॥१६॥ हिरन्याक्ष अरु हिरनकसिपु भट आदिक जो संहारयो। ताहि प्रेतबाधा बारन हित राई लोन उतारयो । जासु चरन प्रगटित सुरसरिता कीन्ह्यों विश्व पुनीता। तेहि सुचि करन हेत कौशल्या नहवावै अति प्रीता ॥१७॥ जो बलि छल्यो बाढि घामन वपु द्वै पद किय संसारै।