२४ रामखयंवर। भरत राम संवाद कह्यो पुनि लहि पादुका पयांना ! सूपनखा कुरूप जिमि कीन्ह्यो फरत हास संवादा। खर दूपन त्रिसिरा वध वरनन पुनि दसकंठ विषादा ॥१३०॥ पुनि मारयो मारीच जथा प्रभु बरनि जानकी-हरना । राम विलाप कलाप को पुनि गोधराज गति करना । ऋष्यमूक को गवन पवनसुत मिले जवन विधि आई। पुनि सुग्रीव सनेह-सीम कहि दुंदुभि अस्थि ढहाई ॥१३१॥ (दोहा) सप्तताल भेदे जथा, वालि-सुकंठ-बिरोध । पुनि वाली सुग्रीव रन, वध्यो वालि-करि क्रोध ॥१३२॥ वैदेही दरसन किया, जेहि विधि पवनकुमार । दिया सुंदरो मुंदरी, वूड़त मनहुँ अधार ॥१३३॥ पुनि वरन्यो रावण-निधन, सीतामिलन हुलास । कह्यो विभीपन को तिलक, पुहुपविमान विलास ॥१३४॥ अवध नगर आगम कह्यो भरत सभाग समेाद । राजतिलक रघुवीर को, वरन्यो प्रजा विनोद ॥१३५॥ वानर विदा वखान किय, रघुपति रंजन राज ।' लिय गवनी पुनि विपिन जह, सुंदर ऋपिन समाज ॥१३६॥ अब आगे को चरित जो, कह्यो सो उत्तर पाहिं । घरन्यो यह अनुक्रमणिका, ऋषि रामायण माहि ॥१३७॥ मुनि बिरच्या चौविस सहस, रामायण अश्लोक । .
पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/४१
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