राम स्वयंवर। अन्न वसन भूपंन अरु भोजन विविध भांति ते दीजै। । कमै न कौनहुँ वस्तु समै मह चित दैसकल करीजै ॥७३॥ सुनि वशिष्ठ-शासन मंत्री सव वोले वचन तहाँहीं। प्रभु शासन अनुसार करव सव कमी वस्तु कछु नाहीं ॥ सचिव-वचन सुनि सुखी भये गुरु लियो सुमंत वुलाई । कह्यो वचन अवनी अवनीपन नेउता देहु पठाई ।। ७४॥ महाराज मिथिलाधिप जिनको जनक नाम अति शूरे । लोक धर्म वेदज्ञ सत्य वल ज्ञान विज्ञानहुं पूरे ॥ तिनको तुमहिं सुमंत जाइ तह ल्यावहु नेउति बोलाई । सांचे रघुकुलके संबंधो ताते कहौं वुझाई ।। ७५ ॥ तैसे काशिराज प्रियवादी सुरसम जासु अचारा'। तिनको तुमहिं जाय लै आवहु दसरथ मित्र उदारा॥ वृद्ध परम धार्मिक केकैपति श्वशुर भूपमनि केरों।। सादर जाइ ताहि लै आवहु पुत्रसहित मत मेरो ॥ ७६ ॥ (दोहा) 'महाभाग अंगाधिपति, रोमपाद जेहि नाम । राजसिंह सारो सुहृद, तेहि ल्यावहु जसघाम ॥ ७ ॥ दक्षिण भूपति कौशला, भानुमान जेहि नाम । शूरशास्त्रविद मगधपति, दोउ नृप आनहु धाम ॥ ७॥ .... .." (छंद चौचाला) राजसिंह शासन अनुसर संव वोलेहु राजन काहों।" पूरचं पश्चिम उत्तर दक्षिण जे मधि देसह माहीं ॥
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