पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/२९०

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२७०
रामस्वयंवर।

२० 'रामस्वयंवर चटयोकटक अति चटक अपारा ।मनहुँ सिंधु तजि दिया करारा चली मंदगति सैन्य अपारा । लखहिं मनुज अवधेत कुमारा॥ प्रति विप्र मंत्री पुरवासी।चले चहकित आनंदराती। (दोहा) - आगे बंजत अनंत तह, तुरही अरु करनाल। . - डिगत न ताल विधान में, गावत मधुर विसाल टि। (गीतिका पितु महल द्वारे रोकि रथ प्रभु कहो भरत वुझायक। लैं जाहु तीनहु मातु अंतहपुरहि विनय सुनायकै ॥ लिय जाइ अपने महल मातुन संग सुदिन विचारिक। कपिराज को तुम कर पकरि लेजा प्रेम पसारिकै ॥४॥ सुनि रामसासन भरत आसुहुलासभरि कपिराज को। कर पकरिलायो कनकभवन निवास दिय सुख साह को। राज्याभिषेक - हनुमान आदिक चारि वीर सुनीर चारि समुद्र को। " ल्याये निसावीततहरपि करिहरप सुर अजरुद को ॥६४८॥ । प्रभु सकल वधुन सहित दर्शरथमहल कीन निवास है।' तहँ गुरु वशिष्ठहु आय बोल्पो वचन वलित हुलाल है। ; ' सिय सहित कीजै नेम यहि निसि काल्हि तुच अभिपेक है। · विधि सकल जानी रावरे की जथा जौन विवेक है ॥६॥ • प्रमु नाय गुरुपद सीस पंकज पानि जोरे नैलियो।