रामस्वयंबर। वामदेव, जावालि, कश्यपहु अरु सुयज्ञमतिखानी । गुरु वशिष्ठ अरु और सकल मुनि ल्यावहु तुम इत सानो गयो तुरंत सुमंत ऋपिन को ल्यायो सभा बुलाई। राजा उठि प्रणाम तब कीन्हो आसन दै बैठाई ॥ १३ ॥ धर्म अर्थ जुत वचन उचारयो सुनहु सवै मुनिराई।। और सवै सुख, नहिं संतति सुख ताते कछु न सोहाई॥ अश्वमेघ मख पुत्र-हेत हम करै मेदि तव पैहैं । श्रृंगी ऋषि प्रभाव ते मेरे सिद्ध मनोरथ हैहैं ॥ ६४॥ सुनि मुनिजन भूपति मुख निर्गत वचन परम सुख पाये। सकल सराहि उछाह भरे पुनि ऐसे वचन सुनाये ॥ 'तजहु तुरंग संग सुभटन के दै द्रुत विजय नगारा। सरजू उत्तर दिसा करहु नृप सकल यज्ञ-संभारा॥ ६५ ॥ पैही पुत्र सर्वथा भूपति चारि अमित पलवारे । । जह ते भई धर्म की मति यह करियो यज्ञ विचारे ।' अति प्रसन्न तव भये अवधपति सुनि मुनिजन की वानो। हरपि कह्यो सुभ वैन सुमंत्रिन देहु काज येह ठानी ॥६६॥ सब विधि समरथ अहै। सचिवगन कछु न वस्तुको हानी। सकल सिद्धि करिहें वाजीमख सादर शारंगपानो। भूपसिरोमनि-वचन सुनत सव बोले बचन सुखारो। हेहै तथा जया प्रभुशासन वृथा न गिरा तिहारी ॥ ६॥ शृङ्गी ऋषि शांतायुत यहि विधि बले अवधपुर माहां।। बीति गयो सानंद साल यंक जानि पस्यो कछु नाहों।
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