पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/२८८

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रामस्वयंवर।

रामवयंवर। भरत लेन आयें अगुवानी। आई मातु परत अस जानी ।। भरत-आगवन सुनि सुख छाई । गये विमान द्वार रघुराई। खड़े विमान द्वार रघुराई । उदय मेरु मनु दिनकरराई । (दोहा) कोलाहल माच्यो तहाँ, लोग लखन ललचान। अवध-अलंच विलंब विन, उतरे भूमि विमान ॥ ६२७ ॥ (चौपाई.) :..: ... तिहि अवसर सीता तहं आई। लपन मातुपद गह्यो त्वराई ॥ गयो वैठि जव भूमि विमाना। कूदे तव तुरंत भगवाना। कूदत प्रभु कह भरत निहारी । गिसो दंडसम भूमि मझारी ॥ भरतहि हिय उठाइ रंघुराई । गए लपटि विह्वल दोउ भाई ॥ गुरु वशिष्ठ तिहि अवसर आये । जसं तस के दोहुँन विलगाये। गुरुपद परे पुलकि भगवाना । लियो अंक गुरु रह्यो न भाना आवत निरखि भरत चैदेही । गह्यो दौरि पदः परम सनेही ।। जनकसुता दिय आसिरवादा। जियहुलाल लगि महि मरजादा। (दोहा) . . . गयो लपन तवं भरत-पद भरत लिया उर लाइ। कह्यो भरत धनि धनि लपन कियभल प्रभु सेवकाई॥३२॥ . ...... (चौपाई) :. : . शत्रुशाल गिरि प्रभुपद माहीं । लीन्हों.नाम' चहत. दृर्ग जाहीं।। रिपुहन कह प्रभु हिये लगाई। सूध्यो सीस गोद वैठाई। आई गए जननी जिहिं ठामा। कियो प्रथम कैकयी प्रनामा ।