पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/२८६

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रामस्वयंवर।

२० रामस्वयंवर चल्यो कदक अति चटक अपारा मनहुँसिंधु तजि दिया करारा चलो मंदगति सैन्य अपारा । लखहि मनुज अक्वेत कुमारा। प्रति त्रिम मंत्री पुरवासी । चलें चहकित आनंदराती॥ (दोहा) आगे पंजत अनंत तह, तुरही अरु करनाल। . डिगत न ताल विधान में, गावत मधुर विसाल ॥४६। " जिंदगीतिका ' पितु महल द्वारे रोकि रथ प्रभु का भरत वुझायकै।। लै जाहु तीनहु मातु अंतहपुरहि विनय सुनायक। लिय जाइ अपने महल मातुन संग सुदिन विचारिक। कपिराज को तुम कर पंकरि लेजाहु प्रेम पसारिकै ॥६४७॥ सुनि रामसासन भरत आसु हुलासभरिकपिराज को। कर पकरि लायो कनकभवन निवास दिय सुख साह को ।। राज्याभिषेक हनुमान आदिक चारि वीर सुनीर चारि समुद्र को।' ल्याये निसावीतत हरषि करिहरप सुर अजरुद को ॥६४८॥ प्रभु सकल वंधुन सहित दशरथ महल कीन निवास है। तहँ गुरु वशिष्ठहु आय वोल्यो वचन वलित हुलाल है। लिय सहित कीजै नेम यहि निसि काल्हि तुव अभिषेक है। - विधि सकल जानी रावरे की जथा जौन विवेक है ॥६४६॥

  • प्रभु नाय गुरुपद सीस पंकज पानि जोरे हँसि कहो।