२६८ रामस्वयंवर। भरत लेन आये अगुवानी 1 आई मातु परत अस जानी।। भरत-आगवन सुनि सुख छाई । गये विमान द्वार रघुराई॥ खड़े विमान द्वार रघुराई । उदय मेरु मनु दिनकरराई ॥ (दोहा) कोलाहल माच्यो तहाँ, लोग लखन ललचान । अवध-अलंच विलंब विन, उतरे भूमि विमान ॥ ६२७ ।। (चौपाई) ." तिहि अवसर सीता तहं आई। लपन मातुपद गह्यो त्वराई ॥ गयो वैठि जब भूमि विमाना । कूदे तव तुरंत भगवाना ॥ कृदत प्रभु कहँ भरत निहारी । गिसो दंडसम भूमि मझारी॥ भरतहि हिय उठाइ रघुराई । गए लपटि विह्वल दोउ भाई ॥ गुरु वशिष्ट तिहि अवसर आये । जस तस कै दोहुँन विलगाये। गुरुपद परे पुलकि भगवाना । लियो अंक गुरु रह्यो न भाना आवत निरखि भरत चैदेही । गह्यो दौरि पद परम सनेही ।। जनकसुता दिय आसिरवादा। जियहुलाल लगि महि मरजादा॥ (दोहा) गह्यो लपन तव भरत-पद भरत लिया उर लाइ।' कह्यो भरत धनि धनि लपन कियभल प्रभुसेवकाइ॥३२॥ (चौपाई) , , शत्रुशाल गिरि प्रभुपद माहीं । लीन्हों नाम वहत दृग जाहीं॥ रिपुहन कहँ प्रभु हिये लगाई । सूध्यो सीस गोद वैठाई ॥ आइ गए जननी जिहि ठामा। कियो प्रथम कैकयी प्रनामा ॥
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रामस्वयंवर।