पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/२८२

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रामस्वयंवर।

२६६ रामवयंवर सो कोसलपुरपाल कृपाला । आय प्रयाग वस्यो यहि काला॥ लहित वानरीसैन्य समाजू ।आवत. लपन सीय रघुराजू ।। तजहु सोक दारुन प्रभु-भ्राता । लखिही काल्हि भानुकुलत्राता॥ इतना सुनत भरत तिहि काला। भयो महामुद मगन विहाला ।। गद्गद कंठ चोलि नहिं आवत । हनुमतवदनलखत टक लावत ॥ .. जल तलकै अल वचन सुनाये । को हो तात-कहाँ ते आये ॥ । (दोहा) .. .. .. . . . कहो वचन मुहि परम प्रिय राख्यो जात सरीर। , देहुँ धेनु यक लच्छ तुहिं तदपि होत नहि, धीर ॥ ६११ ॥ __. . . : ..(चौपाई): ' ' ..... :: . . :.. वोल्यो हुलसि प्रभंजननंदन । पुलकित भरत चरन करि वंदन ॥ मैं कपि हाँ केसरी-किशोरा । रघुपति: किंकर तेसह तोरा ॥ धखों विप्र वपु परिचय हेतू। दिय-निदेस अस रघुकुलकेतू ॥ सुनि-रामानुज रामागमनू । मंगलमूल . अमंगलदमनू ॥ . पुनि पुनि मिलि अल वचन उचाराविधि आखर को मेटनहारा।। चौदह वरस विते कपिराई ।आज नाथ सिगरी सुधि पाई ॥ भयो मनोरथ पूरन आजू,लखिहाँ कृपासिंधु कृतकाजू ॥ ऐहैं अवसि काल्हि रघुराजू । करहुँ अलंकृत नगर दराजू ॥ . ...(छंद.हरिगीतिका), .... . - हरपित,भरत तह वोलि रिपुहन कह्यो वचन उदार 1: ,, "तुम जाहु आनुहि अवधपुर जहँ जननि दुखित अपार-.:

... दीजै.खवरि रघुवंसमनि जानकी लपन, समेत 1.:::...