पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/२७८

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२६२
रामस्वयंवर।

२६२ रामस्वयंबर (बोहा) राम लपन कपि सैन्यजत, कीन्ह्यो सुखित निवास । जोरि पानि बोल्यो वचन, आय विनीयन पास।। ५७२ ॥ अयोध्या-गमन : (चोपाई) . मज्जन करहु भ्रातजुत रामा । पहिरहु भूपन बसन लामा ।। यह विभूति रघुनाथ तिहारी। होय कृतारथ है न हमारी ॥ सुनत विभीपन वचन रसाला । हियहर्षित हँसि कह्यो पाला। 'मैं नहिं मजहुँ सो सुनु कारन । कीन्हें भरत मोर व्रत धारन । राजकुमार बड़ो सुकुमारा । सखा भरत मुहि प्रानपियारा ॥ जैहों अवध जु अवधि विताई। मिलीन जियत प्रानप्रिय भाई ।। विपम पंथ दूरी अति देसा। चीतत अवधि होत अंदेना ॥ कह्यो विभीपन तब कर जोरी । सुनहु नाथ विनती यह मारी। अवध एक दिन महँ पहुँचेही । नाथ सकल संदेह मिटेही ॥ है यक पुप्पक नाम विमाना । भानु समान प्रकास महाना॥ सो विमान हाजिर तुव हेतू । मोरि विनय सुनु कृपानिकेतृ ॥ जो कछु पूजन करहुँ तुम्हारा । सैन्यसहित अवधेशकुमारा॥ (दोहा) । करि कृपालु मेपर कृपा, सबै ग्रहन करि लेहु। दीन जानि मुहि मान दे, कीजे सफल सनेहु ॥ ५ ॥