पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/२७१

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रामस्वयंवर।

रामस्वयंवर। हने राम सायक बहु लाखा । भस्म भये लगि शलहि पाखा ॥ लियो महेन्द्र शूल रघुराई । शत्रु शूल पर दियो चलाई ॥ भयो खंड द्वै रावण शूला । मिटी देव मुनि कपि हिय शूला॥ बानद पुनि पुनि रघुनाथा । हनत कहत रहु थिर दशमाथा ॥ रोम रोम वेध्यो तनु चानन ! भयो शल्य की सरिस दशानन ॥ (दोहा) . है विसंग रथ पर गिलो, सोरथि मृतक विचारि। . लै भाग्यो रन ते तुरत आरत वचन पुकारि ॥५१६॥ " (चौपाई ) लंकद्वार लगि जय रथ गयऊ । सावधान दशकंधर भयऊ॥ चढ़यो महारथ रावन राजा । धावत आयो संगर काजा।। महाभयंकर श्यामशरीरा । लखि रावग प्रमुदित रघुवीरा ॥ मातलि अस कह्यो वुझाई । तुम सुजान सारथि सुरराई ॥ लै चलु स्थहि सवेग धवाई। परै वाम दिसि निशिचरराई ॥ तह मातलि प्रभुपद सिर नाई ।रघुनंदन स्यंदनहि धवाई ॥ तब कीन्हीं रन रावण माया। अंधकार दलहूँ दिसि छाया॥ प्रभु हलिभास्कर अन चलायो । छन महँमाया सकल उड़ायो॥ (दोहा) महा धनुर्धर वीर दोउ, रचे गगन सरजाल । तिल भर अंतर नहिरह्यो, सुर मुनिभये विहाल ॥५२१॥ तहँ राघव लाघव कियो, तजि सर तेज-निकेत । रावण सिर काट्यो तुरत, कुंडल मुकुट समेत ॥५२२॥