रामस्वयंबर। प्रथम दरस.कीन्हों भंगो ऋपि पावक सरिस प्रकासा । रोमपाद सुनि दसरथ-आगम पायो परम हुलासा ॥५२॥ सखा परम प्रिय संबंधी नृप रामपाद लहि प्यारे । पुनि पुनि करत महा सत्कार अघात न मोद अपारे । अंगराज-कृत अति सत्कारिक कोसलनाथ उदारा। वसे पंचदस दिवस अंगपुर दोउ नृप एक अगारा ॥५३!! कहो अंगपति से कोसलपति शांताकांत समेता। हसरे कोसल नगर चलाहिं द्रुत मम कारज के हेता-॥ अंगराज तव विनय करी नृप बात कही यह नीकी । शृंगी ऋपि जैहैं कोसलपुर यह हमरेहू जी की ॥५॥ शंगी ऋषि का आगमन । रोमपाद शृंगी ऋषि सों पुनि विनय करी फर जारी। अवध जाहु शांता संयुत प्रभु मानि विनय यह मारी ॥ कहि तथास्तु भंगी ऋषि पासु हि चले सहित निज नारी। रोमपाद से-कह्यो अवधपति देहु विदा सुखकारी ॥५५॥ पठ्यो अवध तुरत हलकारे तरल तुरंग चढ़ाई। साचवन दियो निदेस अवधपुर राखेहु सुभग सजाई ॥ छपन छपा के राव इव मा के दंड उतंग उड़ाके । विविध किता के बंधे पताके छु0 जे रवि-रथ-चाके॥५६ किया अलंकृत नगर अनूपम खबरि पाय पुरवासी। राज-रजाइ सिवाइ कियो पुर-रचना मंत्रिन खासी-1,
पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/२७
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।