रामस्वयंवर। • कटो विभीषण यह मृपा भाप्यो पवनकुमार। अस दसमुख करिहै नहीं जानौ भेद हमार ॥५७१॥ पै अवध्य अप होत हठि महावली धननाद । करतो यज्ञ निकुभिला माने हारि विपाद ॥५७२।। पठवहु लछिमन आसुही अंगद हनुमत संग। मैं सर भेद बताइहाँ जिमि होई मख-भंग ॥५३॥ (कवित्त) राम को निदेल सुनि इंद्रजीत-जुद्ध हेत नैन अरविंद नेकु केंगे अरुनारे हैं। फरके प्रचंड दोर्दड जे अखंड ओज, सायक कोदंड को घमंड सो निहारे हैं। उमॅग्यो अनंत उत्साह उर आहब को, लौटव न आज विन इंद्रजित मारे हैं। रघुराज आज चढयो चौगुनो चलत चाउ , रामानुज अंग मनो वखतर फारे हैं ॥५॥ (छंद चौवोला) अस कहि लपन प्रभुचरन बंद्या चल्यो तमकि तुरंत । हनुमत विभीपण अंगदादिक चले कपि बलवंत ॥ तह लख्यो लपन निकुंभिला ठाढ़ी निशाचर सैन । मनु श्याम मेघ घटा धनी मनु मीच की है ऐन ॥५७५।। तव दियो सासन लपन पवनकुमार को अतुराय । काजे न सरसन्मुख समर लै कपिन की समुदाय ॥ धायो प्रभनजपूत अंगद सहित खलदल ओर । मारयो निशाचर वृन्द फोरयो गोल कपि बरजोर ॥१७॥
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रामस्वयंवर।