पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/२६४

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रामस्वयंवर।

रामस्वयंवर। दंड द्वैक माह नाकि वेग सों भरत खंडयायो लंक खंड में कपीस किलकारिकै ॥५६॥ . . (सोरठी)" .. गई न आधी रात, आय गयो कपि सैन्यं में।... लग्यो औषधी यात, वानर उठे. अभंग सब ॥५६३।। उठे लपन अरु राम, मिले परस्पर हर्पि अति। कपि पूसो मन काम, कहहिं कौन हनुमान सम ॥५६॥ (दोहा) चल्यो तुरत धननाद तह, करिकै पावक होम ॥ . करिही महि विन वानरी, वाढ़ी यह मन जोम ॥५६५॥ . (छंद तोटक ) . . . . . माया करी अनखाय । सियरूप लोन बनाय ॥ हनुमान सन्मुख जायं । तिहि हन्यो ताहि दिखाय ॥५६॥ भे सिथिल हनुमत अंग । घटि गई जुद्ध उमंग ॥ प्रभुसो निवेदन कीन । भो रामवदन मलीन ॥५६७।। बोल्यो . लपन अनखाय । नहिं होत धर्म सहाय ॥. . जो धर्म धरनि उदोत । तो तुमहिं नहिं दुख होत १५६८ (दोहा) . - . यहि विधि भापत बहु वचन लछिमन के तिहि काल। . .. - आय गयो,लंकेस :तह प्रभु लखि भयो विहाल ॥५६॥ पूच्यो का यह होत अब कह्यो. लखन विलखात । - अनरथ कीन्ह्यो इन्द्रजित- कही पवनसुत यात ॥५७०॥