पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/२५७

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रामस्वयंवर।

• रामस्वयंवर। अंगद अरु हनुमंत धाय हुत चार वार अस टेरे:५०६॥ कुल की प्रभु की और धर्म की सुरतिछोड़ि कसभागे। - उभय लोक अवहीं पनि जैहैं राम काज महं लागे । अंगद वचन सुनत मर्कट भट जीवन आस विहाई । धाये कोटि कोटि चहुँ दिसि ते लैतरु गिरिसमुदाई ॥५१०॥ कुभकर्ण तनु चढ़े चटक सब हनि हनि वृक्ष पहारा। फपिन द धरि धरि निज मूटन लाग्यौ करन अहारा॥ धायो द्विविद महीधर ले कर कुंभकर्ण कहँ माखो। नहिं पहुँच्योताकेसिरपर गिरि गिरिमहिसैनसंहासो॥५१॥ कुंभकर्ण रणदुर्मद .धायो लीन्हें सूल कराला। महा सैल इत लियो पवनसुत हन्यो दौरि विकराला ॥ मारुति माखो महा महीधर लग्यो माथ महँ जाई। कुंभकर्ण कछु भयोव्यथित तह संभरिकोप अति छाई १५१२।। हन्यो त्रिसूल हनूमत के उर निकरि गई तनु फेरी। सोनित वमत भयो कदि विह्वल भई मूर्छा थोरी॥ आवत कुभकर्ण को लखि तहँ रह्यो कीसपति ठाढ़ो। कहो वचन सुग्रीव भीमबल रन उमंग भरि गाढ़ो ॥५१३॥ (दोहा) कुभकर्ण लघु वानरन मारे तुहि जस नाहिं। मेरे सन्मुख आयकै दरसावै वल काहिं ॥५१४॥ . कीसराज को जानिकै कुंभ कर्ण वलवान ।

लै-त्रिसूत सन्मुख भयो, कीन्यो वचन बखान ॥५१५॥