पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/२५६

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२४०
रामस्वयंवर।

२४० रामस्वयंवरत महिप वराह मेप अज सहसन भच्छन कीन्ह्यो नाना ।। रुधिरकुंभ अरु सुराकुंभ, वहु मेद कुंभ करि पाना। . पूछ्यो रजनीचरन हेतु केहि कीन्हें जगन विधाना ॥५०४।। किहि कारन भूपति जगवायो है सब विधि कल्याना। तवं यूपाक्ष जोरि कर वोल्यों कुंभकर्ण नहिं जाना । लै वानरी' सैन्य चदि आयो 'कोसलदेस भुवाला। भट प्रहस्त आदिक रन झूझे घेरे.. लंक विसाला ||५०५|| सुनिकै हस्यो ठठाय गुन्यो असलियो विष्णु अवतारा। ... भयो विनास निसाचर कुल को कृत रावण अपकारा॥ . पुनि प्रभु कर निजवविचारिमन कुभकर्ण वलवाना। करि मज्जन भूपन पट पहिलो प्रभुपददरस लुभाना ॥५०६|| ... (दोहा): ... " ।। .. कुंभकर्ण उत जायकै, रावण के दरवार' अग्रज को वंदन कियो, पूछि कुसल व्यवहार ॥५०७ " (छंद चौवोला) . .... तातो खबरि कहीं सब रावण कुंभकर्ण तव वोलो! . निसिचर-कुल छय कियो दसानन भयो दर्प-वस भोला । यहि विधि वार्ते कहो उचित चहु राजनीति अनुसारा .. लयो बहुरि अव जाहु समर को वंदन लेउ' हमारा ॥५०८॥ अस कहि कुंभकर्ण संगर को चल्यो सुद्ध-मति कुद्धा। एक फलंक लंक दरवाजा आयो , नांधिं विद्धा॥ भगे वलीमुख महावली लखि फिरें न फर पर फेरे।