रामस्वयंवर। २३६ सुनि राम बैन अचैन रावण भग्यो छुटेके श। अवधेश-सायक भीति भरि लंका घुस्यो लंकेश ॥४॥ (दोहा) .. उत लंका मह लंकपति, सुमिरत रघुपति वान। भय भरि बोल्यो निशिवरन, अव दिखात नहिं बान ॥४५०॥ कुंभकर्ण युद्ध (चौवोला). जाहु जगावहु कुंभकरन को सो विसेपि जय पाई। निसिचर-कुल की वचन हेतु नहिं दीसत और उपाई ॥ करि सचाह सोयो नव दिन गत ताहि जगावहु जाई। चले जगावन कुंभकर्ण को निसिचर अति भय पाई ॥५०॥ चंदन प्रथम लगाये तनु में सीचे सुरभित नीरा । चीना वेनु मृदंग संखध्वनि कियो निलाचर भीरा ॥ दल हजार निसिचर जोधावर लगे जगावन लाको। एक सहस दुंदुभी बजाये करि नादित लंका को ॥५०२॥ मूसर मुद्गरं परिघ गदा लै जोर जोर भरि मारें। तऊन जागत नींद विवस खल गिरितरुतनु परडारें। नहिं जाग्यो तव सहस मत्तगज तिहि तनु पर दौराये। तवजाग्यो कोउ करत परस तनुतड्यो नींद सुख छाये॥५॥३॥ कुम्भकर्ण उठि वैठि सेज पर मुख वगारि जमुहाना।
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रामस्वयंवर।