रामखयंवर पुष्पक विमान चढ़ायकै । ल्यावहुसियहिदरसायकै ॥४७॥ बिजाविभीषन-कन्यकाासियदासिकाजग धन्यका॥ पुध्यकवितान मैगायक ले चली सियहि चढ़ायकै ॥४७॥ सियलख्योलछिमनराम को पायोमहा दुखधाम को॥ निजटा लगी समुभावने । लीला कियोजगपावने ॥४२॥ पुष्पकविमानहि फेरिकै । सिय लै चली दल हरिकै ॥ इत समर लीला देखिकै । देवर्षि कारज लेखिकै ॥४७३॥ गगड़हि पठायो आसुही । अहि की छुड़ावन पासुही। ' खगराज पंख पसारिकै । आयो अतुरता धारिकै ॥४४॥ देखत गरुड़ अहि भगतभेदोउ जगतपतिद्रुत जगतभे॥ कपिकियोजय जयकार कोलखि निरुजराजकुमारको॥४७५ (सोरठा) कीन्ह्यो गरुड़ प्रनाम, दै परदच्छिन परसि पद। गये आपने धाम, कपिदल अय. जयकार भो ।। ४७६ ॥ (पद्धटिका छंद) . राक्षसहु जाय राव गहि द्वार । बहु बार वार सीन्हें पुकार ।। आयो उदंड कोउ इक विहंग जिहि निरखिभभरिभागेभुजंग ॥ ... (चौवोला) : . दशकंधर सुनि दरत अधर रद वोल्यो वैन रिसाई । रोकहु वीर द्वार लंका के सके न वानर आई ॥ .: हमाहि जाब सजि समर हेत अब देखयं कपि मनुसाई। कह सुग्रीव कहाँ माता मम कहाँ लपन रघुराई ॥ ४७७॥
पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/२५१
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२३५
रामस्वयंवर।