पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/२३२

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रामस्वयंवर।

रामस्वयंबर । क्रोधभवन चलि मागि ठानि हठि देहे नृप सतिवादी। चौदह वर्ष वसैं धन रघुपति लहै भरत नृपगादी ॥ ३६२ ॥ सुनि कैकयी क्रोधगृह गवनो आये जब महिपाला । मरन ठानि मॉग्यो मुख द्वै घर भूपति भये विहाला॥ बोलि राम कहें कह्यो जान धन रघुपति अति सुखमाने ! सीता लपन समेत चले वन हर्प विपाद न जाने ॥३६३॥ शृंगवेरपुर बसे जाय प्रभु मिलिकै सखा निषादै । उतरि गंग पहुंचे प्रयाग मह दियो मुनिन अहलादै॥ भरद्वाज को मिाल पुनि रघुवर जमुना उतरि अनंदे । वाल्मीकि के आश्रम आये विनय सहित पद वंदे ।। बसे विचित्र चित्रकूटहिं पुनि पर्नकुटी रचि नीकी । लह्यो महामुख सहित लपन सिय अवधपुरी भै फोकी ॥ रोम बिरह विलपत आधी निसिभपति तज्यालोग। केकयपुर ते भरत बुलाया गुरु वशिष्ठ मतिधोरा ।। ३६५ ।।. समुझायो बहु राज करन को भरत किया नहिं गज। चल्यो चित्रकूटहि मातन लै वसत जहाँ रघुराजू॥ शृंगवेरपुर मिलि निषाद सों पहुँचे भरत प्रयागौ। पांव पयादे चलत पंथ महँ भरे राम अनुरागा ॥ ३६६ ।। सत्रुसाल जुत, तीर्थराज मह भरद्वाज कह देखे । तिन अनुमति चलि चित्रकूट महं देखि राम मुद लेखे ॥ यह विधि किया विनय लौटन हित जनक भूप तहँ आये। तेऊ बहुत भांति समुझायो राम न कछु चित लाये ॥३६७५