पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/२३०

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रामस्वयंवर।

२१४ रामस्वयंवर । दियो तात जिहि भांति रजाई । करिहौं सकल भाँतिमन लाई। सुनि भूपति प्रसन्न अति भयऊ । जादु भवन अस सासन दयऊ।। पितुपद बंदि चले रघुनाथा । गहे पानि लछमन कर हाथा| सुहृद सखा जे संग लिधारे । सुने बचन जे नृपति उचारे ॥ कौशल्या के भवन तुरता । गवन किये मोदित मतिवंता॥ सकल जयाक्रम खबरि वखाने । राम होहिं जुवराज बिहाने । सभाभवन ते उठ्यो नरेसा । गहि सुमंत कर चल्यो निवेसा॥ __ (दोहा) घर घर बाज बजायकै प्रजा करहिं सव गान । सुखद राम जुवराज पद हाई हि होत विहान ॥ ३५१ ॥ (चौपाई) निसा सिरानि भयो भिनुसारा । सजत सजावत पुरी अपारा॥ द्वार द्वार महँ तने विताना । सुर मंदिर पूजन सविधाना । तोरन ध्वजा रंभ के खभा । मरे कनक कमनीय सुकुंभा ॥ धनिकधनदसमअवधनिवासी। रचे दुकान मनोहर खासी। पुर बाहर जहँ लगि अमराई। दिये निसान उतंग बधाई ॥ गावहिं मंगल गीत सुहावन । वाज बजावहिविविध उरावन । जुरिजुरि थल थल महँ पुरवासीरामकथा सब कहहिं हुलासी चलहु चलहु अब भूपति द्वारे । लखहु राम अभिषेक सुपारे । यही सेर सब पुर महँ छायो ।देस मनुजगन,देखन धायो॥ सुर नर मुनि जे जे सुनि पाये। प्रभु अभिषेक बिलोकन धाये।