पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/२२२

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२०६ रामस्वयंवर । भोजन वसन पहिरि महराजा। कुचर समेत महा वि छाजा॥ शुद्ध सतोगुन सुन्दररूपा । भोजनभवन गयो पुनि भूपा॥ भूप संग बैठे सब भाई । होन लगी ज्यवनार सुहाई ॥ सिव कर भूपहि परसावें । श्वशुर हाथ पुनि नेग दिवावैं ।। करि आवमन उठे नरनाहू । धेोइ चरन कर गुनि सुख लाहू ॥ बैठे पुरट पीठ मह जाई। तीनिउँ रानिनि लियो युलाई॥ को बदन देखन को चारा। करवाओ लागे नहि बारा। (दोहा) राजकुमारिन चारिहू रानी आसु लिवाय । बैठाई भूपति निकट कुलतिय वृद्ध, बुलाय ॥ २८६ ॥ फह्यो तुरत कैकयता बदन दिखाई नेग। जनकदुलारी को अहिं देहु महीपति वेग ॥ २६॥ (कवित्त) बोल्यो रघुराज राजराम सिरताज सुनी कैले करों पूरी काज लाज करि हारौंगी। करतो बिचार बार बार मैं खमार. ही से होत है लदार जिय कैले निरधारौंगो । भूपन बलन गेहगाऊंकी चलावै कौन,संपति सकाल टिहँदिमुखवारेंगा। अवध की साहिबी अमरपति साहिवीहू, तूलिहै न नेको अनेक दय डा गो॥ २६१ ॥ (चौपाई) अस कहि पाय परम अहलादा। दियो महीपति आशिर्वादा । पुनि बुलाय तीनिहं पटरानी । कह्यो बुझाय महीपति बानी ॥