रामस्वयंवर। २०५ (दोहा) पुत्रबधुन जुत पुत्र लै बैठी घर दरबार । सुर सुदरी समाज ले गावहिं नाचि अपार ॥ २७७ ।। (चौपाई) उतै पशिष्ट सहित महराजा । गे बाहर अहं भूपसमाजा॥ नेउतहरी भूपति सम आये । जथाजोग सब कहं बैठाये ॥ देन लगे नृप तिनहिं विदाई । रथ तुरंग मातंग मंगाई ॥ बरनत दशरथ सुजस नृपाला । निज निज देशन चले उत्ताला ॥ भूप युधाजित दशरथ स्थालो । आयो विदा होन तिहि काला ॥ करि सत्कार अवधपति बोले । बनत न अवै आपके डोले ॥ बसे युधाजित भवन बहोरी । कह्यो भूपगुरु विनती मारी॥ चलहु नाथ मम संग रनिवासा। देहु दुलहिनिन सुंदर वासा ॥ (दोहा) अस कहि भूप वशिष्ठ लै गयो मासु रनिवास । मच्या जहां वैकुंठ सम सुन्दर हास विलास ॥ २८२ ।। वास्तुकर्म करि भवन को गवन फियो गुरु गेह । भूप कहन लागे कथा जथा विदेह सनेह ॥ २३ ॥ पुनयधू अरु पुत्र मम सवते प्रान पियार। औंघाते सुत नींद बस चलहु करहु ज्यवनार ॥२८४॥ (चौपाई) अस कहि उठी सफल तह रानी। पट नवीन चेरीप मानी॥
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