पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/२२०

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२०४
रामस्वयंवर।

२०४ रामस्वयंवर। आतुर सजे अवधपुर याप्ती । दूलह दुलहिन देखन आसी ! चले लेन आसुहि अगवानी । सकल पुन्य फल आपन जानी । कौशल्यादि तीन महरानी । तिनकी पठई सखी सयानी ॥ सुंदरि दधि अच्छत कोटीको। दीन्हो राम भाल महं नीको !! मनु अनुरन ते पाच रिसाई । वस्वी शुक्र शशिमंडल आई ॥ लपन भरत रिपुहन के भाला । दधि टोको दीन्हाँ सब बाला || (दोहा) पुनि दुलहिनि पाल कि पटन नेलुक नारि उघारि। . दधि टिकुली देती मई मंजुल पानि पसारि ॥२७॥ माई सुरभीरज सम्य किया वरिष्ठ उचार। . पहुंच्या विमल विमान तव अतहपुर के द्वार ।। २७१ ॥ (चौपाई) मध्य चौक मह धरयो विमान । उयो साँझ बेला जनु भानू ॥. सनी मारती थार हजारन । ओली भरी रत्न सखि वारन । सहित पट्टनिन कुलदीपा । गयो विमान समीप महीपा । पढ़हि स्वस्त्ययन विप्रन नारी।रानिन विधि दरसाव हिंसारी। गुरु वशिष्ट कह लियो वुलाई । मागे ठाढ़ किया सिर नाई ॥ गुरुपत्नी अरुंधती आई । मनहुँ पतिव्रत मूर्ति सुहाई ॥ कौशल्या कैषयी उचारी । गुरुपत्नी पद देहु उधारी । तहँ अरुंधती अतिमुख छाई । निज कर सो पट दियो उठाई। गाँउ जोरि तीनहु पटरानी । खड़ो भूप गुरु आयसु मानी बारबार भारती उतारति। पूत पतोह नयन निहारति ।