पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/२१८

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२०२
रामस्वयंवर।

२०२ रामस्वयंबर । दिखाया है । देखि रघुराज काज भृगुकुल दिनराज, ठाढ़ोसो थकोसोजको बदन सुखाया है॥२५३॥साज्यो सरासनमें सायक अनल पुत्र, बोले रघुनायक प्रकोपि चापि वानी है । खड्लै कुठार लै विचार जो तुम्हार होय विक्रम दिखाओ जैसी मति हुलसानी है। वीर ते विहीन तू वसुंधरा विचारयो विप्र छिप छत्रि बल को पिलोक वीरमानी है। मनै रघुराज आप विश्वामित्रनातोगनि त्यागतोन तीरजो करैयाप्रोनहानी है २५४ (चौपाई) धनु सायक साजे रघुधीरा । वोल्यो वचन मंतु रनधोरा ।। विप्र वित्रारि बचायों तोहीं। देखत दया लागि अति मोहीं॥ पै यह वैष्णव धनु को सायक। कबहुं न मोय होन के लायक। उभय लोक गति तप करिपाई। जौन कही सो देहुँ नसाई ।। इतना कहत वचन तिहि काला। राम रूप तह भयो कगला ॥ परशुराम कहँ उपजरो साना । सत्य सत्य रघुपति भगवाना ॥ अस विचारिमय मानि मुनीलाागिरथो दंडसम करि पद सीसाय पुनि उठि जोरिपान भृगुराई । ठाढ़ो कछु न सके मुख गाई । पाहि पाहि त्रिभुवई के स्वामी । मैं द्विज दीन सदा अनुगामी ॥ ताते फरिकै कृपा कृपाला । हनहु स्वर्गगति मोरि विसाला (दोहा) यसिंहो जाय महेंद्रगिर जपिही तिहरी नाम | सुमिरन करिहौं दिवस निसि रामरूप मभिराम२६॥