पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/२१६

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रामस्वयंवर।

२०० रामस्वयंवर। छिति मंडल दीन्हो सकल कश्यप को करि दान ॥२४३n पुनि महेन्द्रगिरि को गयो तह तप किया अभंग। आयो मासु हि कुपित अप सुनि पिनाक फर भंग ॥२४४।। (कवित्त) ताते कहैं। सत्य राम मेरो नहीं दूजो काम पिता पितामह ते कोदंड यह मेरी है। लीजिये धनुष सर साजिये चढ़ाय गुन होइ जो घमंड भुजदंडवल ढेरो है। विक्रम विलोकि रावरे को रघुराज हम शस्त्र लै उछाह से विसारि अवसेरो है ॥ छोडि छल छंद शुद्ध वीरता अनंद पुनि द्वंद्व युद्ध होइगा. हमारी अरु तेरो है ॥ २४५ ॥ भरत दरत रद कोप त्यों करत हद बोल्यो भृगुनाथ सों न ऐसा होन पावैगो । राम बंधु ठाढ़े तीन बाँकुरे समर गाड़े युद्ध के उछाह वाढ़े जासे भल भावैगे॥ तास युद्ध कीजे निज वल दिखराय दीजै लीजै सीख मानि पकै युद्ध ईट' आवैगो । जियत हमारे तीनो भाइन के रघुराज रामही की सैह कौन रामसौंह जावैगो ॥ २४६ ॥ (सवैया) चोले प्रकोपिन है भृगुनंदन, रे रघुनंदन से छलछाई । भाइन को बरजैन उतै, अरजै इत मोसे करे 'मुसक्याई. बाम है तेहूं यथा तुव बंधु, करै किन आँखिन मोटहि भाई । नाहिं तौ देत हैं। कंठकुठारबच्या अवलों गुनि बालकताई॥२४॥