पृष्ठ:संक्षिप्त रामस्वयंवर.djvu/२१

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रामस्वयंघर। नगर नई दिसि वाग सुहावन अति मंजुल अमराई । विहरत विविध कुरंग विहंग मनोहर सोर मचाई ॥१६॥ तीनि ओर परिखा जल-पूरित उत्तर सरजु सुदाई। गजसाला तुरंगसाला रथसाला विविध वनाई ॥ दुर्ग भयावन नगर सुहावन रिपु दुर्गम प्राकारे । इंद्र बरुन यम की गति जहँ नहिं का पुनि भूप विचारे॥२७॥ वीना वेनु पटह पनवादिक वाजत रोज नगारे । अवध सरिस सेामा सुर नर मुनि त्रिभुवन में न निहारे । भावी राम-जन्म गुनि प्रगट्या वसुधा में चैकुंठा। जह ब्रह्मपि सुरपि राजऋपि पिचरहिं बुद्धि अकुंठा ॥१८॥ महा महर्पि सरिस सब द्विजवर सील संकोच सुभाऊ। प्रजन परमप्रिय प्रान सरिस जिन मानत दसरथ राऊ॥ ऐसे कोसलपुर को नायक दसरथ भू-भरतारा । जाको सुजस जगत जगजाहिर करत दिगंत पसारा ॥१॥ भेदभास यक चारि बरन में अतिथि देव में पूजा। चतुराई कृतज्ञताई थल अवध सरिस नहिं दूजा ॥ विक्रम बस्यो सकल सूरनगन धर्म सत्य तनु माहीं। कुल कदंब मह वसी वृद्धि तह दंड वाद्यगन पाहीं ॥२०॥ यसता बसी ब्रह्म छत्री विट सूद्र जाति अनुसारा । धर्म पतिव्रत अवध नगर मह नारिनगन आधारा ॥ हंसर्वसअवतंस भूप वर दसरथ सील सुभाक। . जासु प्रसंस करत सुर नर मुनि भयोजथा मनु राऊ॥२१॥