रामस्वयंघर। (दोहा) परशुराम के बचन सुनि, अकुलान्यो अवधेश । जान्यो अब सब को भया, नास सत्य यहि देख ॥१८॥ (चौपाई) इतन्यो रध ते दशरय राजा। लियो घुलाय सुनीस समाजा॥ करि भागे मुनि वृद महीपा । भूप गयो भृगुनाथ समीपा ॥ मुनिजन निरखि परसुधर काहीं । मापुस मह सिगरेवतराहों ।। किधी पितावच लुधि मनफरिकआयो पुनिअमरप उरभरिको अस कहि सत्र मुनि फिये प्रनामा। वाले सफल राम हे राम दशरथ बाटीनता दिखाई पार चार चरनन सिर नाई ।। (दोहा) रे दशरथ मम गुरु-धनुप, निज सुत पानि तुराय । छमा करवत चूक निज, मीठे पचन यताय ॥१८॥ भयो अब? नहि माथरी, मोर उदंड फुठार । : उपन्यो अमरप दून अब, करी सकुल संहार ॥८॥ (चौपाई) बस सुनि परशुराम की बानी । जान्यो भूप मीच नजिकानी । तहाँ तुरंत सुमंतकुमारा । जाय राम से.बचन उचारा॥ कहो करत ठाढ़े सब भाई ! आयो एक विप्र अनखाई॥ मापन नाम परशुधर भाप । वार पार भूपति पर मापै ॥ गुरु वशिष्ठ आदिक मुनिराई। पारहिवार फहै समुझाई ॥ नहिं मानत रोके दल ठाढ़े। जाना परत वीर पर गाड़ी॥
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रामस्वयंवर।