___१८४ रामस्वयंबर। (दोहा) . धोखे अनधोखे कछुरू, जौन चूरू परि जाय । छमा करय निज वाल गुनि, मेरमान सुधि ल्याय ॥१३॥ (चौपाई) शतानंद विहि अबसर आये । तिहि वशिष्ठ कहि बदन बुझाये॥ भायो विदा मुहरत जयहीं। परिछन होइ जनावहु सवहीं ॥ सुनत वशिष्ठवचन सदुलाल। गौतमलुवन जाय रनिवास ॥ बोलि सुनैनहि दियो बुझाई । रानि चारि पालकी मँगाई ॥ दूलह दुलहिन सपदि चढ़ाई। मंगश गान मनोहर गाई॥ . कनक थार आरती उतारी । पढ़ि सुभ मंत्र उतारयो वारी ॥ कीन्छो सन घिधि परिछनारा। लियो वहारिउतारि कुमारा। तव सब को कारिफै समाना । जानि सुनैना सिद्धि समाना। बैठे समा जहां दोउ राजा । भ्रातन सहित गये रघुराजा ।। भयो सोकसागर रनिवाला । लागी पहुरि दरस की प्रासा॥ (दोहा) भावत लखि रघुराज को, सिगरी उठी समाज। ' श्वसुर पिता पद बंदि प्रभु. बैठे सील दराज ॥१५॥ तिहि अवसर गौतम सुवन, वाल्यो वचन विचार । गमन मुहरत आइगो, कन्या चले सिधारि॥ १४६॥ एवमस्तु दसरथ बाह्या, राम चारिह भाय। चले तुरंगन में चढ़े, पिता श्वसुर सिर नाय ॥१४७॥ ,
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